सेल्फी क्रेज़: विसुअल कल्चर की दौड़ में जीवन से ज्यादा इमेज को महत्व दे रहे हैं हम


सेल्फी लेना हम सभी को पंसद है। जीवन के खास पलों की स्मृति को शौकिया तौर पर संरक्षित करना परफेक्ट क्लिक के बिना संभव नहीं है। सेल्फी का ट्रेंड टेक्नोलॉजी के साथ डिजिटल परिदृश्य में तूफानी ताकत की तरह बहुत तेजी से आगे बढ़ चुका है। सेल्फी की शुरुआत स्वयं का पोट्रेट मजेदार ढंग से क्लिक करने के लिये हुई। एक अच्छे और आकर्षक परफेक्ट शॉट और स्वयं के प्रति ध्यान आकर्षित करने की लालसा वाली सोच से सेल्फी का तरीका ही बदल गया है। अब ये अविश्वसनीय ढंग से एक जोखिम भरा प्रयास बन रहा है।

सेल्फी लेना किसे पंसद नहीं है? लेकिन, यह जरूर ध्यान रखे कि आप अगली सेल्फी क्लिक करते समय जिंदा रहे। जहाँ स्मार्टफोन और सेल्फी स्टिक ने शानदार सेल्फी लेने की राह आसान बना दी है वहीँ इस वजह से अकल्पनीय स्थान जैसे ट्रेन की पटरियों, ऊंची इमारतों और पुलों पर जोखिम के साथ सेल्फी लेने का चलन भी बढ़ा है। यहां तक कि सेल्फी प्रेम के चलते प्रतिबंधित क्षेत्रों तक को नहीं छोड़ा जाता। यही वजह है कि दुनिया में सेल्फी लेने के चक्कर में जान गंवाने वालों की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। इसने एक नये शब्द ‘किल्फी’ को भी जन्म दिया है। यानि लोग खुद के जीवन को खतरे में डालकर मौत को मात देने का साहस कर रहे है। ऐसे मे यह कहना गलत नहीं होगा कि इस क्रेज के चलते जीवन की भी क्षति हो रही है।

दुनिया में आश्चर्यजनक ढंग से सेल्फी लेने की होड़ में जानलेवा दुर्घटनायें बढ़ी है। एक परफेक्ट सेल्फी के लिये प्रयास का घातक परिणाम भी मिल सकता है यह एक 2018 के शोध से पता चलता है। अकेले भारत में 76 मौत सेल्फी से संबंधित है, जबकि वैश्विक स्तर पर लगभग 259 लोग सेल्फी लेने के चक्कर में अपनी जान गवां चुके हैं।

इस मामले में विश्लेषण पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आये है। विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने पाया कि जोखिम भरे तरीके से सेल्फी लेने में पुरुष अव्वल है। इससे संबंधित मौतों का आंकड़ा बताता है कि हादसों का शिकार अधिकांशत: 24 साल से कम उम्र के हुये है। दरअसल, इसके पीछे युवाओं के दिमाग की एक विचित्र मानसिकता है। शोध के अनुसार युवा मानते है कि बेहद खतरनाक जगह पर प्रेमी या दोस्त के साथ एक रोमांटिक या परफैक्ट सेल्फी उनकी गहरी दोस्ती का प्रतीक है। वे इसे मजबूत और कभी खत्म नहीं होने वाली दोस्ती का हिस्सा मानने लगते हैं।

आइये, इस मनोविज्ञान को समझते है कि लोग सेल्फी लेते क्यों है? और, वे कौन से कारण हैं जिन्होंने खुद की तस्वीर लेने को एक नशे में बदल दिया है? सेल्फी के प्रचलन के यह निम्न कारण हैं।  

स्मार्टफोन की संख्या में अप्रत्यशित वृद्धि।
स्वयं को अद्भुत (cool) या अत्यधिक क्रिएटिव साबित करने की प्रतिस्पर्धा।
रिलेशनशिप को इमेजेज के जरिये मजबूत दिखाने की सोच और एक-दूसरे से जुड़ने का एहसास।
इंटरनेट के कारण समाज विजुअल कल्चर की ओर बढ़ रहा है। इस वजह से जहां किसी भी घटना की इमेज लाइफ में महत्वपूर्ण बन गई है वहीँ परस्पर विश्वास के लिये सेल्फी को अत्यधिक महत्व दिया जाने लगा है।  
मेरी राय में, खतरनाक ढंग से सेल्फी लेने का एक बड़ा कारण "सामाजिक तुलना" भी है। दरअसल, हम सभी समाज का हिस्सा है। यहां लोग अक्सर खुद की तुलना दूसरों से करते है और खुद को कमतर नहीं मानते। साथ में काम करने वाले भी दबाव में रहते हैं और वे सदैव एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश भी करते हैं। ऐसे में सेल्फी के माध्यम से व्यक्ति स्वयं के जीवन को और रोचक दिखाने का प्रयास करता है।

सेल्फी आमतौर पर स्वयं को दूसरों की नजरों में सर्वश्रेष्ठ दिखाने का शौकिया नजरिया बन गया है। सेल्फी लेने से पहले मानव मन विचार करता है कि हम कैसे दिखते हैं और मंथन करता है कि सेल्फी पोस्ट करने के उपरांत उसमें दूसरों की दिलचस्पी किस तरह की और कितनी होगी? इस वजह से युवा परफेक्ट शॉट तलाशते हैं और खतरनाक जगहों पर भी पहुंचने से स्वयं को रोक नहीं पाते, जो उनके लिये घातक साबित हो रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रवृत्ति विजुअल कल्चर का हिस्सा है। जहां हम हमेशा चूहे की दौड़ जीतना चाहते हैं और कोशिश करते हैं कि खेल में सबसे आगे बने रहे। कुछ नया करने और दूसरे का ध्यान आकर्षित करने के लिये वेवजह जोखिम उठाने को हम तैयार रहते हैं।

हमारा जीवन न्यूरो-केमिकल और न्यूरो-इलेक्ट्रिकल सर्किट पर आधारित है। इन्ही तरंगो के दो धुरी – पहला, स्वयं के प्रति और दूसरा, आध्यात्मिकता – के बीच हमारे जीवन के पल गुज़रते हैं। यही भावनात्मक खोज हमें विभिन्न प्रकार के अनुभव कराकर स्वर्ग एवं नरक तक का एहसास कराती है।

मेरा अध्ययन कहता है कि जब सामाजिक दिमाग काम करता है तो वह सेल्फी के उन्माद का सृजनकर्ता बनता है। वहीँ दूसरी तरफ, ऐसे व्यक्ति जो उच्चतम कोर्टिकल क्रम-विकास (cortical evolution) के लिये सक्षम है वे खतरनाक परिस्थितियों में खुद को डाले बिना वास्तविक और दीर्घकालीक खुशी का अनुभव करने में प्रयासरत रहते हैं। अंतत: सेल्फी लेते समय यह महत्वपूर्ण है कि उस परफेक्ट शॉट के लिये आप किस हद जाने का तैयार है।

बेशक, अंदर की खुशी जरूरी है लेकिन, जीवन भी महत्वपूर्ण है। इसलिये, अगली बार जब आप वोह परफेक्ट सेल्फी ले रहे हैं, तो यह अहसास अवश्य करें कि आप सुरक्षित है! खुद की प्रशंसा करना अच्छा है, लेकिन अंत में जीवन महत्वपूर्ण है। स्वयं को महत्व देने की भावना अल्पकालीन है और उसका कभी कोई अंत नहीं है। 
क्षणिक की हड़बड़ी में जीवन का नुकसान नहीं करें।  

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