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Showing posts from October, 2019

मस्तिष्क और भावनाओं में तालमेल से सुधर सकता है हैप्पीनेस इंडेक्स

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आर्थिक दृष्टि से सबसे मजबूत माने जाने वाले देशों में भारत की गिनती हो रही है। इस अहम उपलब्धि के बाद भी हम दुनिया की नजर में 'खुशहाल' नहीं है। दरअसल, हमारा 'हैप्पीनेस इंडेक्स' लगातार गिर रहा है। इसमें वर्ष 2013 से लगातार गिरावट आ रही है। इसके मायने यह है कि हम आर्थिक तौर पर मजबूत जरूर हो रहे है लेकिन, मानसिक तौर पर हमारी शांति घट रही है। कुछ न कुछ तो गड़बड़ है जो हमें खुश नहीं होने देती। महात्मा गांधी को शायद इसका अहसास बहुत पहले ही हो चुका था। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि विश्व में हैप्पीनेस इंडेक्स के पायदान पर इराक और पाकिस्तान जैसे देश हमसे बहुत आगे है। यानि इन देशों में लोग भारतीयों की तुलना बहुत ज्यादा खुशहाल है। खुशहाली मापने के लिये 156 देशों का सर्वेक्षण हुआ। इस साल मार्च इसकी रिपोर्ट जारी हुई, जो बेहद चौकाने वाली है। 156 देशों की सूची में भारत का स्थान 140वां है। इससे पहले 2018 में हम 133वें स्थान पर थे। यानि हम सात पायदान लुढ़क गये। इससे पहले वाले 2013 के सर्वेक्षण में भी हम लुढ़ककर 122 पर आये थे। इधर, ताजा रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान

खुशी, स्वास्थ्य और लम्बी आयु के लिए अपने मस्तिष्क की शक्ति को बढाएं, ऐसा आप कैसे कर सकते हैं

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आप नास्तिक हो सकते हैं मानव जीवन की उत्पत्ति को लेकर आपका दृष्टिकोण अलग हो सकता है। लेकिन इस बात से आप जरुर सहमत होंगे कि मानव शरीर प्रकृति का सबसे विकसित और अद्भुत निर्माण है। मानव मस्तिष्क, शरीर का मुकुट और गहना है, जो इस रहस्यमयी ऑटोमैटिक सिस्टम का एकमात्र नियामक है। सामान्य भाषा में हम इसे एक सुपर कंप्यूटर के रूप में वर्णित करते है, जो गतिशील डेटाबेस को एक सुरक्षित हड्डीदार कक्ष में स्टोर करता है। हमें इस बात से अवगत होना चाहिए कि कुछ सद्गुण जन्म के साथ ही संघर्ष के लिए तैयार होते हैं, जबकि दूसरों को विकास के माध्यम से सीखा जाता है और संज्ञानात्मक रूप से विकसित किया जाता है। 20वीं शताब्दी के शुरुआती दौर के कठोर मस्तिष्क से न्यूरो सांइस (तंत्रिका विज्ञान) ने एक लंबा रास्ता तय कर लिया है, जो खुद को फिर से तैयार करने में सक्षम है। इससे अराजकता और मस्तिष्क की गतिशीलता की बेहतर समझ के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ है और साथ ही वर्तमान क्षमता के साथ गुणवत्ता स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए स्वयं को फिर से तैयार करने के प्रति सचेत हुआ। मानव मन वैज्ञानिकों और दार्शनिकों दोनों