मस्तिष्क और भावनाओं में तालमेल से सुधर सकता है हैप्पीनेस इंडेक्स

आर्थिक दृष्टि से सबसे मजबूत माने जाने वाले देशों में भारत की गिनती हो रही है। इस अहम उपलब्धि के बाद भी हम दुनिया की नजर में 'खुशहाल' नहीं है। दरअसल, हमारा 'हैप्पीनेस इंडेक्स' लगातार गिर रहा है। इसमें वर्ष 2013 से लगातार गिरावट आ रही है। इसके मायने यह है कि हम आर्थिक तौर पर मजबूत जरूर हो रहे है लेकिन, मानसिक तौर पर हमारी शांति घट रही है। कुछ न कुछ तो गड़बड़ है जो हमें खुश नहीं होने देती। महात्मा गांधी को शायद इसका अहसास बहुत पहले ही हो चुका था। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि विश्व में हैप्पीनेस इंडेक्स के पायदान पर इराक और पाकिस्तान जैसे देश हमसे बहुत आगे है। यानि इन देशों में लोग भारतीयों की तुलना बहुत ज्यादा खुशहाल है।

खुशहाली मापने के लिये 156 देशों का सर्वेक्षण हुआ। इस साल मार्च इसकी रिपोर्ट जारी हुई, जो बेहद चौकाने वाली है। 156 देशों की सूची में भारत का स्थान 140वां है। इससे पहले 2018 में हम 133वें स्थान पर थे। यानि हम सात पायदान लुढ़क गये। इससे पहले वाले 2013 के सर्वेक्षण में भी हम लुढ़ककर 122 पर आये थे। इधर, ताजा रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान 67वें और चीन 93वें स्थान पर रहा। यहां तक कि श्रीलंका, भूटान और नेपाल जैसे देश हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत से उपर है।

सवाल उठता है कि एक अच्छी आर्थिक विकास दर होने के बाद भी भारत में लोग दुखी क्यों है? 2013 के बाद हमारा खुशी का सूचकांक यानि हैप्पीनेस इंडेक्स लगातार क्यों गिर रहा है? हैप्पीनेस इंडेक्स केवल आँकड़ें नहीं है। यह मनुष्य के मन—मस्तिष्क और देश की अंतर्दशा को बताता है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी के सहयोग से आर्थिक तौर पर भारत में मजबूत विकास नजर आ रहा है लेकिन, कभी खुशहाल भारत के लिये समग्र सुख में सुधार कहीं नजर नहीं आ रहा है। इस पर मनन होना चाहिये।

इन दिनों एक और महत्वपूर्ण बात व्यक्तिगत तौर पर मैंने अनुभव की है कि बीमारियों और धार्मिक अंधविश्वास में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। इस वजह से धर्म गुरुओं के प्रति भी अंध विश्वास बढ़ा है। न्यूरोलॉजिस्ट के रूप में मेरा दशकों का अनुभव रहा है। इस दौरान मुझे अनगिनत लोगों के मस्तिष्क की जांच और उनके साथ बात करने का मौका मिला। मेरे अपने अध्ययन, 'द डिकेड ऑफ द ब्रेन' और ‘Triune Brain Evolution’ में मैकलीन ब्रेन मॉडल के गहराई से अध्ययन के बाद खुशी या स्वास्थ्य पर पड़े उल्टे असर को लेकर मैं भारत के वर्तमान परिदृश्य का उदाहरण दे सकता हूं।

मैकलीन ने अपनी पुस्तक ‘Triune Brain Evolution’ में स्पष्ट किया है कि विकसित मनुष्य का प्रतिनिधित्व करने वाला एक मस्तिक किस तरह तीन तंत्रिका सब्सट्रेट से बना हुआ है। उनके अनुसार, रेप्टिलियन मस्तिष्क सबसे पुराना है। इसके बाद भावनात्मक। तीसरा एवं अहम, जिसे उन्नत या नये मस्तिक के तौर पर जाना जाता है वह नियोमामेलियन है। ये सभी एक—दूसरे से जुड़े हुये है। इसके बावजूद प्रत्येक की अपनी एक स्वतंत्र जैव कम्प्युटरीकृत और अद्वितीय जैनेटिक प्रोग्रामिंग होती है। एक विकसित मस्तिष्क के इन तीन विभिन्न घटकों पर मनुष्य का व्यवहार निर्भर करता है। ये रोचक तथ्य है जो आर्थिक विकास के बाद भी हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत की गिरावट के वर्तमान परिदृश्य को समझने में मददगार साबित हो सकते हैं—


• सबसे पुराना रेप्टिलियन मस्तिष्क है। यह पशु प्रवृति की भांति परस्पर लड़ाई, यौन इच्छाओं को महसूस करना एवं समझना और उसके अनुसार काम करता है।

• दूसरा स्तर, विकासवादी मस्तिष्क है जिसे लिम्बिक सिस्टम के रूप में जाना जाता है। यह  लालच, स्वार्थ, ईर्ष्या, सामाजिक जुड़ाव, प्यार, घृणा, भय और परिवार और समाज के संरक्षण के लिए आवश्यक अन्य भावनात्मक अभिव्यक्तियों के लिये जिम्मेदार है।

• जब भावनाओं ये मस्तिष्क नियंत्रित होने लगता है तो मनुष्य, भौतिक सुखों को हासिल करने के लिये धन प्राप्ति की लालसा, सामाजिक तौर पर स्वीकार्य व्यवहार को करने का आदी होने लगता है।

• आधुनिक नियोकोर्टिकल मस्तिष्क सिरे के सामने की ओर होता है। आत्म-बौद्धिकता, आध्यात्मिक विचार, निर्णय लेने और याद रखने की क्षमता इस हिस्से में होती है। नियोकोर्टिकल मस्तिष्क में उच्चतर विकास, करुणामय, परोपकारी और आध्यात्मिक बनने की संभावना अधिक होती है।

मनुष्य मस्तिष्क के इस विकास से वर्तमान परिप्रेक्ष को आसानी से समझा जा सकता है। जब मनुष्य के मस्तिक पर भावनायें हावी हो जाती है और उसका तीसरा हिस्सा उसके साथ तालमेल नहीं बिठा पाता, तब परेशानी शुरू हो जाती है। सर्वशक्तिमान ईश्वर की ओर से मनुष्य को सबसे बड़ा उपहार विद्युत रासायनिक एवं न्यूरो सर्किट्री है। इनके द्वारा वो एक—दूसरे को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। इस तरह मैं मानता हूं कि आज मनुष्यों का जटिल मस्तिष्क भारत के घटते हैप्पीनेस इंडेक्स की बड़ी वजह हो सकती है। खुशहाली के लिये हमारे आसपास मौजूद खुशी को स्वीकार करना होगा। मस्तिष्क की प्रणालियों , स्वास्थ्य और खुशियों के बीच तालमेल से हैप्पीनेस इंडेक्स सुधारा जा सकता है।

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